Deadly Accidents: यमुना एक्सप्रेसवे पर 15 दिसंबर की रात हुए भीषण सड़क हादसे के बाद भले सरकार हरकत में आ गई हो, लेकिन वाहन चालकों की रफ्तार पर ब्रेक नहीं लग पाया है। दुर्घटना के बाद गति सीमा घटाए जाने के बावजूद सिर्फ तीन दिन में 600 से अधिक वाहनों के ओवरस्पीडिंग में चालान कटे, जबकि हकीकत यह है कि तेज रफ्तार से चलने वाले वाहनों की संख्या इससे कहीं ज्यादा है, कैमरे सिर्फ एक हिस्सा पकड़ पा रहे हैं।
राज्य सरकार ने सुगम आवागमन के लिए एक्सप्रेसवे तो बना दिए, लेकिन इन सड़कों पर रफ्तार का जुनून जानलेवा साबित हो रहा है। सामान्य हालात में हल्के वाहनों के लिए 120, यात्री वाहनों के लिए 100 और माल वाहनों के लिए 80 किलोमीटर प्रति घंटा की गति सीमा तय है। इसके बाद भी जिन वाहनों के चालान काटे गए, वे तय सीमा से काफी तेज दौड़ते पकड़े गए। हालात यह हैं कि लोग गंतव्य तक जल्दी पहुंचने की जल्दबाजी में अपनी जान, दूसरों की जिंदगी और जेब—तीनों को दांव पर लगा रहे हैं।
कोहरे में हादसों ने बढ़ायी चिंताएं
आगरा व पूर्वांचल एक्सप्रेसवे पर नवंबर और दिसंबर के बीच ओवरस्पीडिंग के मामलों ने भी चिंता बढ़ाई है। एक से 15 नवंबर के बीच 4346 वाहनों के चालान हुए, जबकि एक से 15 दिसंबर के बीच यह संख्या 5302 पर पहुंच गई। यह वही वाहन हैं जो कैमरों की जद में आ सके, असल तस्वीर इससे कहीं ज्यादा भयावह मानी जा रही है। ओवरस्पीडिंग के मामले में दो से चार हजार रुपये तक का चालान अलग से भरना पड़ रहा है। हालांकि 19 दिसंबर से दिन और रात के हिसाब से नई गति सीमा तय होने के बाद रोजाना होने वाले चालानों की संख्या 300 से घटकर करीब 200 रह गई है, जिसमें ठंड और कोहरे के कारण वाहन संचालन में आई कमी भी एक वजह मानी जा रही है।
यूपीईडा ने कोहरे के दौरान दुर्घटनाएं रोकने के लिए वाहनों को समूह में चलने का निर्देश जारी किया था, लेकिन आगरा और पूर्वांचल एक्सप्रेसवे पर इसका पालन होता नहीं दिखा। न तो टोल प्लाजा पर वाहनों को समूह बनाने के लिए रोका गया और न ही चालकों को धीमी और सुरक्षित गति के लिए गंभीरता से जागरूक किया गया। एक्सप्रेसवे पर पेट्रोलिंग के लिए मौजूद टीम भी वाहनों की अगुवाई कर सुरक्षित समूह बनवाने की भूमिका में नजर नहीं आई।
सड़क सुरक्षा के पूर्व अपर परिवहन आयुक्त पुष्पसेन सत्यार्थी का बड़ा खुलासा
सड़क हादसों के आंकड़े यूपी के लिए और भी ज्यादा डराने वाले हैं। सड़क सुरक्षा के पूर्व अपर परिवहन आयुक्त पुष्पसेन सत्यार्थी के अनुसार, देश में हर साल होने वाली सड़क दुर्घटनाओं में मृतकों की औसत हिस्सेदारी 28–30 फीसदी के आसपास रहती है, जबकि यूपी में 45 हजार हादसों में मौत का प्रतिशत 50–55 के बीच है। सबसे अधिक हादसे दोपहिया वाहनों के साथ हो रहे हैं और इनमें भी 18 से 35 साल आयु वर्ग की हिस्सेदारी 52 फीसदी के करीब है। यदि आयु सीमा को 45 वर्ष तक बढ़ा दिया जाए तो यह प्रतिशत 72 के आसपास पहुंच जाता है। यानी देश की युवा मेरुदंड सड़क पर सबसे ज्यादा जोखिम में है।
ये हैं हादसों के सबसे बड़े कारण
सत्यार्थी के मुताबिक ओवरस्पीडिंग, रॉन्ग साइड चलना, ईकोन ड्राइविंग (क्लच पर लगातार पैर रखकर चलाना) और मोबाइल फोन पर बात करते हुए वाहन चलाना हादसों के सबसे बड़े कारण हैं। अनुमानित तौर पर 70 फीसदी घटनाएं इन्हीं कारणों से होती हैं, जबकि करीब 29 फीसदी सड़क दुर्घटनाएं खराब रोड इंजीनियरिंग की देन हैं। उनका कहना है कि कोहरे के लिए हर साल पहले से योजना बननी चाहिए, क्योंकि यह अचानक नहीं आता। वाहनों को 70 मीटर की दूरी पर समूह में चलाने, फिटनेस (ब्रेक लाइट, रेट्रो रिफ्लेक्टिव टेप, इंडिकेटर आदि) दुरुस्त रखने जैसे उपाय पहले से सुनिश्चित किए जा सकते हैं।
https://x.com/ChAnkur/status/1864974236856525061?s=20
…तो तस्वीर बदल सकती है
सड़क सुरक्षा तंत्र कागजों पर मजबूत दिखता है। जिला सड़क सुरक्षा समिति की हर महीने, मंडलीय स्तर पर तीन महीने में एक बार और मुख्यमंत्री स्तर पर साल में दो बार बैठक का प्रावधान है। जिलाधिकारी, परिवहन, पुलिस, पीडब्ल्यूडी और अन्य विभागों के समन्वय से यदि इन फैसलों पर ईमानदारी से अमल हो तो तस्वीर बदल सकती है। लेकिन तंत्र की सक्रियता के साथ जनता की मानसिकता में बदलाव भी उतना ही जरूरी है। ड्राइविंग को कैजुअल लेना, “जरा दूर ही तो जाना है” सोचकर बिना हेलमेट या सीट बेल्ट के निकल जाना, वही लापरवाही है जो एक क्षण में जिंदगी बदल देती है।
https://tesariaankh.com/dr-ajay-kumar-chhaprauli-experienced-farmer-leader/
ड्राइवर और विभाग—दोनों की साझी जिम्मेदारी
सत्यार्थी का स्पष्ट मानना है कि सड़क दुर्घटनाओं पर ब्रेक लगाने के लिए ड्राइवर और विभाग—दोनों की साझी जिम्मेदारी बनती है। उन्होंने ड्राइवर ट्रेनिंग और वाहन फिटनेस व्यवस्था पर भी सवाल उठाए। निजी क्षेत्र को सौंपे गए फिटनेस सेंटरों पर बिना वाहन देखे फिटनेस प्रमाणपत्र जारी होने की शिकायतें आम हैं। ऐसे में सड़क सुरक्षा कैसे सुनिश्चित होगी? आने वाले समय में ड्राइविंग ट्रेनिंग सेंटरों को भी सख्त कसौटी पर परखने की योजना है। विशेषज्ञों की सलाह है कि हर नए ड्राइवर को कम से कम 21 घंटे का मानक प्रशिक्षण अनिवार्य किया जाए, तभी सड़क पर सुरक्षित व्यवहार की संस्कृति विकसित हो सकेगी।








