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Skanda Sashti 2025: संतान और सफलता देंगे भगवान कार्तिकेय

Skanda Sashti 2025: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि, जो इस वर्ष सोमवार, 27 अक्टूबर 2025 को पड़ रही है, को स्कंद षष्ठी व्रत के रूप में मनाया जाएगा। यह दिन भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र भगवान कार्तिकेय (स्कंद, कुमार या मुरुगन) की पूजा को समर्पित है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और पूजा करने से संतान प्राप्ति, सुख-समृद्धि और सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।

द्रिक पंचांग के अनुसार, सोमवार के दिन सूर्य तुला राशि में और चंद्रमा धनु राशि में रहेंगे। शुभ कार्यों के लिए अभिजीत मुहूर्त सुबह 11:42 से 12:27 तक रहेगा, जबकि राहुकाल सुबह 7:53 से 9:17 तक रहेगा।

भगवान स्कंद की महिमा और इतिहास

स्कंद षष्ठी का उल्लेख स्कंद पुराण में मिलता है। इसमें वर्णन है कि भगवान कार्तिकेय ने इसी दिन राक्षस तारकासुर का वध किया था। उनकी इस विजय से प्रसन्न होकर देवताओं ने इस दिन को उत्सव के रूप में मनाना आरंभ किया।

Skanda Sashti Vratham: Festival of Lord Murugan (image from social media)
Skanda Sashti Vratham: Festival of Lord Murugan (image from social media)

भगवान कार्तिकेय को देवसेनापति कहा जाता है — यानी देवताओं की सेना के प्रमुख। वे शक्ति, पराक्रम और अनुशासन के प्रतीक माने जाते हैं। दक्षिण भारत में उन्हें मुरुगन या सुब्रमण्य नाम से पूजा जाता है।

स्कंद षष्ठी का धार्मिक महत्व

यह व्रत उन लोगों के लिए अत्यंत शुभ है जो संतान सुख की इच्छा रखते हैं। पुराणों में वर्णित है कि स्कंद षष्ठी का व्रत करने से योग्य संतान, संतान की रक्षा और जीवन की बाधाओं से मुक्ति मिलती है।

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इसके अलावा, यह व्रत जीवन में धन, प्रतिष्ठा, विजय और सुख-समृद्धि प्रदान करता है। कहा जाता है कि भगवान कार्तिकेय की पूजा करने से व्यक्ति का साहस और आत्मबल बढ़ता है।

व्रत और पूजा की विधि

  1. व्रती को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करना चाहिए।
  2. घर या मंदिर के पूजा स्थल को स्वच्छ कर लाल वस्त्र बिछाकर भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
  3. सबसे पहले भगवान गणेश और नवग्रहों की पूजा करें।
  4. तत्पश्चात भगवान कार्तिकेय को वस्त्र, इत्र, दीपक, धूप, और नैवेद्य अर्पित करें।
  5. भगवान कार्तिकेय का प्रिय पुष्प चंपा है, इसलिए उन्हें चंपा के फूल अवश्य चढ़ाएं।

इस दिन “ऊँ स्कंद शिवाय नमः” मंत्र का जाप तीन, नौ या 108 बार करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है। पूजा के बाद आरती करें, परिक्रमा करें और प्रसाद ग्रहण करें।

स्कंद षष्ठी की पौराणिक कथा

प्राचीन कथा के अनुसार, दैत्य तारकासुर ने देवताओं पर अत्याचार बढ़ा दिए थे। देवता ब्रह्मा जी के पास पहुंचे, जिन्होंने बताया कि उसका वध केवल भगवान शिव के पुत्र द्वारा ही संभव है।

माता सती के निधन के बाद भगवान शिव गहन तपस्या में लीन थे। देवताओं ने कामदेव से अनुरोध किया कि वे शिवजी की तपस्या भंग करें। जब कामदेव ने पुष्प बाण छोड़ा, तो शिवजी ने क्रोध में अपनी तीसरी आँख खोली और कामदेव भस्म हो गए। बाद में माता पार्वती ने अपने तप से शिवजी का हृदय पुनः जीता और उनसे विवाह किया।

https://x.com/KanchiMatham/status/1982066455320600744

कुछ समय बाद भगवान शिव के तेज से छह दिव्य अंश उत्पन्न हुए, जिन्हें देवी गंगा ने सुरक्षित रखा। छह कृतिकाओं ने उनका पालन-पोषण किया। माता पार्वती ने उन छह बालकों को एक रूप में मिलाकर छह मुख वाले भगवान कार्तिकेय को जन्म दिया।

भगवान कार्तिकेय ने बड़े होकर देवताओं के सेनापति बनकर तारकासुर का वध किया और धर्म की पुनः स्थापना की।

व्रत का महत्व और लाभ

धार्मिक मान्यता है कि स्कंद षष्ठी व्रत करने से —

* संतान की प्राप्ति होती है

* संतान के कष्ट और रोग दूर होते हैं

* जीवन में सफलता और विजय मिलती है

* नकारात्मक ऊर्जा और भय समाप्त होते हैं

यह व्रत विशेष रूप से चैत्र, आषाढ़, और कार्तिक मास की षष्ठी तिथि को किया जाता है।

दक्षिण भारत में स्कंद षष्ठी उत्सव

तमिलनाडु में स्कंद षष्ठी को कांडा षष्ठी कहा जाता है। वहाँ मदुरै, तिरुचेंदूर, पलानी और चेन्नई के मुरुगन मंदिरों में यह पर्व अत्यंत धूमधाम से मनाया जाता है।

छह दिनों तक चलने वाले इस उत्सव में भक्त भगवान मुरुगन के जीवन की घटनाओं का नाट्य रूपांतरण करते हैं। तारकासुर-वध नाटक इसका प्रमुख आकर्षण होता है। भक्त स्कंद षष्ठी कवचम् का पाठ करते हैं और अखंड दीपक जलाते हैं।

स्कंद षष्ठी के प्रभावी मंत्र

इन मंत्रों के जाप से भगवान स्कंद की विशेष कृपा प्राप्त होती है —

ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महा सैन्य धीमहि तन्नो स्कंदः प्रचोदयात्।

ॐ शरवण-भावाय नमः।

वल्ली-देवसेना-पतये नमो नमः।

मंत्रों के साथ ध्यान और भक्ति से की गई आराधना जीवन में शुभ फल और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करती है।

व्रत में क्या न करें

* पूजा के दिन मांस, शराब, प्याज, लहसुन का सेवन न करें।

* क्रोध, कटु वचन और असत्य भाषण से बचें।

* ब्रह्मचर्य का पालन करें और सात्विक आहार ही लें।

स्कंद षष्ठी का आध्यात्मिक संदेश

भगवान कार्तिकेय साहस, संयम और धर्म की रक्षा के प्रतीक हैं। स्कंद षष्ठी हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति और आत्मसंयम से ही विजय संभव है।

यह पर्व न केवल संतान सुख बल्कि जीवन में सफलता और आध्यात्मिक शक्ति का भी स्रोत है।

स्कंद षष्ठी 2025 का यह पवित्र दिन भक्तों के लिए एक अवसर है कि वे भगवान कार्तिकेय की उपासना के माध्यम से अपने जीवन में संतान सुख, सौभाग्य और विजय का आशीर्वाद प्राप्त करें।

इस दिन श्रद्धा, सात्त्विकता और संयम के साथ की गई पूजा निश्चित ही हर भक्त की मनोकामना पूरी करती है।

जय स्कंद देवसेनापति! जय कुमार कार्तिकेय!

Tesari Aankh
Author: Tesari Aankh

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