Pankaj Chaudhary: उत्तर प्रदेश की राजनीति में भाजपा ने एक बार फिर अपने जातीय और संगठनात्मक समीकरणों को साधते हुए निर्णायक कदम बढ़ाया है। प्रदेश अध्यक्ष के रूप में पंकज चौधरी की नियुक्ति केवल एक पद परिवर्तन नहीं, बल्कि 2027 के मिशन यूपी की दिशा तय करने वाला सियासी संकेत है।
PDA के जवाब में भाजपा के OBC समीकरण की मजबूती
सपा ने 2024 लोकसभा चुनाव में ‘PDA’ (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फार्मूला अपनाकर शानदार प्रदर्शन किया। भाजपा की सीटें 62 से घटकर 33 पर आ गईं, जबकि सपा 37 तक पहुँच गई।
भाजपा के लिए यह संकेत था कि गैर-यादव ओबीसी वर्ग, जो अब तक उसके साथ मजबूती से खड़ा था, धीरे-धीरे सपा के प्रभाव क्षेत्र में खिसक रहा है।
ऐसे में पंकज चौधरी की ताजपोशी भाजपा के रिवर्स PDA कार्ड खेलने की कोशिश है। चौधरी प्रभावशाली ‘कुर्मी’ समुदाय से आते हैं, जिसकी उपस्थिति पूर्वांचल और मध्य यूपी के लगभग दो दर्जन जिलों में निर्णायक है।
भाजपा को उम्मीद है कि चौधरी का चेहरा न केवल ओबीसी वर्ग को फिर से जोड़ सकेगा, बल्कि सपा के PDA गठजोड़ में भी सेंध लगाएगा।
संगठन व सत्ता के बीच संतुलन साधने की कोशिश
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि पंकज चौधरी की नियुक्ति से भाजपा ने सीएम योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय संगठन के बीच सामंजस्य की नई रेखा खींची है।
एक ओर योगी सत्ता का चेहरा हैं — ठोस प्रशासन और हिंदुत्व की प्रतीक शैली के साथ। दूसरी ओर केंद्र यह सुनिश्चित करना चाहता है कि संगठन का नियंत्रण संतुलित हाथों में रहे और जातीय प्रतिनिधित्व का समीकरण न बिगड़े।
चौधरी का प्रोफाइल इन दोनों जरूरतों को पूरा करता है। वे गोरखपुर क्षेत्र से हैं, पर योगी गुट से दूरी बनाए रखते हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व गृह मंत्री अमित शाह, दोनों के विश्वसनीय माने जाते हैं। इस तरह उनका चयन संगठन की स्वीकृति व सत्ता दोनों के बीच सामंजस्य का प्रतीक है।
कौन कमजोर, कौन मजबूत हुआ
भूपेंद्र चौधरी के बाद प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए बीएल वर्मा, धर्मपाल सिंह और बाबूराम निषाद के नाम प्रमुखता से उभरे थे। लेकिन अंतिम फैसला दिल्ली ने लिया। यह भाजपा की उस पुरानी कार्यशैली की पुष्टि करता है जिसमें राज्य स्तर के निर्णयों की अंतिम मुहर केंद्र से लगती है।
इससे जहाँ राज्य के कुछ पुराने ब्राह्मण-राजपूत प्रभाव वाले नेताओं का प्रभाव घटा है, वहीं ओबीसी चेहरों का कद बढ़ा है। भाजपा अब साफ संदेश दे रही है कि 2027 का चुनाव जातीय प्रतिनिधित्व और सामाजिक इंजीनियरिंग पर केंद्रित रहेगा।
भाजपा की भविष्य की रणनीति: ओबीसी के साथ यादव विस्तार की भी तैयारी
पार्टी सूत्रों के अनुसार, पंकज चौधरी अपने कोर संगठन में एक यादव नेता को महासचिव नियुक्त कर सकते हैं। इसका मकसद सपा के सामाजिक आधार में सेंध लगाना होगा। इसके अलावा भाजपा अपने सहयोगी दल अपना दल (एस) के साथ तालमेल को और सुदृढ़ बनाएगी, जिससे पूर्वांचल में कुर्मी मतदाताओं का ध्रुवीकरण संभव हो सके।
मोदी-शाह की सीधी रणनीति: ‘स्थानीय नेतृत्व पर भरोसा, पर कमान केंद्र की’
प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की जोड़ी ने पिछले दशक में भाजपा की चुनावी मशीनरी को केंद्रित-पर-स्थानीय मॉडल में तब्दील किया है। पंकज चौधरी की नियुक्ति उसी नीति की निरंतरता है — वे स्थानीय सामाजिक प्रभाव रखते हैं लेकिन पूर्ण नियंत्रण संगठन के हाथ में रहेगा।
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बीजेपी का मकसद साफ है — 2027 से पहले एक साल का ‘OBC री-एक्टिवेशन ड्राइव’ शुरू करना, जिसमें पंचायत से लेकर पंचायत सचिवालय तक जातिगत प्रतिनिधित्व और केंद्र के वेलफेयर प्रोग्राम्स को जोड़कर पेश किया जाएगा।
विपक्ष की चुनौती और संभावित प्रतिक्रिया
सपा के लिए यह नियुक्ति सीधे PDA फार्मूले को चुनौती देती है। यदि भाजपा चौधरी के नेतृत्व में कुर्मी और अन्य पिछड़ी जातियों को अपने पाले में रोक पाती है तो सपा की सामाजिक रचना कमजोर पड़ सकती है।
हालाँकि, कांग्रेस और सपा दोनों की नजर यह दिखाने पर रहेगी कि भाजपा का यह कदम केवल “प्रतीकात्मक राजनीति” है, जबकि असली प्रतिनिधित्व सत्ता संरचना में नहीं झलकता।
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पंकज चौधरी की ताजपोशी भाजपा की 2027 रणनीति का शुरुआती कदम है — जहाँ जातीय समीकरण और संगठनात्मक नियंत्रण दोनों साथ दिखते हैं।
यह फैसला बताता है कि पार्टी न सिर्फ पिछले लोकसभा नतीजों से सबक ले रही है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना चाहती है कि आने वाले विधानसभा चुनावों में ओबीसी असंतोष को सपा के खाते में न जाने दे।
2027 की राह लम्बी है, लेकिन पंकज चौधरी की नियुक्ति से भाजपा ने उसका पहला राजनीतिक पत्ता सोच-समझकर खेल दिया है।








