Power Moving Feet: सोचिए, एक ऐसा शहर जहां हर पैदल यात्री का कदम बिजली बनाता हो – रेलवे स्टेशन, मॉल, बाजार हर जगह। जापान पहले ही इस दिशा में कदम बढ़ा चुका है, जहां पाईज़ोइलेक्ट्रिक टाइलें पैरों के दबाव से बिजली पैदा कर रही हैं। शिबुया और टोक्यो स्टेशन जैसे व्यस्त स्थानों पर ये टाइलें एलईडी लाइट्स और डिस्प्ले चला रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि मास प्रोडक्शन और तकनीकी सुधार से वह दिन दूर नहीं जब बड़े पैमाने पर ये सिस्टम शहरों को ‘स्वयं ऊर्जा उत्पादक’ बना देंगे। लेकिन अभी चुनौती है लागत की – आइए गणना करें।
तकनीक कैसे काम करती है?
जब कोई इन सिरेमिक टाइलों पर चलता है, तो वजन और गति से दबाव पड़ता है। टाइल मुड़ती है, पाईज़ो क्रिस्टल्स यांत्रिक तनाव को विद्युत आवेश में बदल देते हैं। हर कदम से 2-5 मिलीवॉट बिजली बनती है। लाखों कदम मिलकर उपयोगी ऊर्जा देते हैं – जापान के ट्रायल में 1 लाख कदम प्रतिदिन से छोटे डिवाइस चलते हैं। भविष्य में स्टोरेज बैटरी और कन्वर्टर से ये कार चार्जिंग या स्ट्रीट लाइट्स तक पहुंचा सकती हैं।
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लागत का हिसाब: उदाहरण सहित
स्थापना महंगी है – प्रति वर्ग मीटर $100-300 (₹8,500-25,500)। रखरखाव न्यूनतम, लेकिन शुरुआती निवेश बड़ा।
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10×10 मीटर कमरा (100 m²): लागत ₹8.5 लाख से ₹25.5 लाख। अगर औसत 50 कदम/म²/दिन (5000 कदम कुल), तो प्रतिदिन 10-25 Wh बिजली (मोबाइल चार्जर जितनी)। ROI 10-15 साल।
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100 मीटर लेन (5m चौड़ी, 500 m²): लागत ₹42.5 लाख से ₹1.27 करोड़। व्यस्त सड़क पर 200 कदम/म²/दिन (1 लाख कदम), दैनिक 200-500 Wh (एक LED बल्ब पूरे महीने)। हाई ट्रैफिक में सालाना 70-180 kWh।
मास प्रोडक्शन से लागत 30-50% गिरेगी, EROI बेहतर होगा।
| क्षेत्र | क्षेत्रफल | लागत (₹ लाख) | दैनिक बिजली (Wh) | सालाना (kWh) |
|---|---|---|---|---|
| 10×10 कमरा | 100 m² | 8.5-25.5 | 10-25 | 3.6-9 |
| 100m लेन | 500 m² | 42.5-127 | 200-500 | 73-182 |
भविष्य की संभावनाएं: शहरों का ‘कदम ऊर्जा क्रांति’
जापान के अलावा UK, चीन में ट्रायल चल रहे। 2030 तक लागत सामान्य टाइल्स जितनी हो सकती, जहां 1 km² व्यस्त क्षेत्र 1 MW/वर्ष बिजली देगा। भारत जैसे देशों में रेलवे स्टेशन (दिल्ली, मुंबई) पर लगाएं तो सालाना लाखों kWh बचत। MSME हब्स, एयरपोर्ट्स में आदर्श। चुनौतियां: ड्यूरेबिलिटी (15M+ साइकिल्स), मौसम प्रतिरोध। लेकिन लाभ: जीरो ईंधन, शून्य उत्सर्जन, रोजमर्रा गतिविधि से नवीकरणीय ऊर्जा।
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विशेषज्ञ कहते हैं, “सोलर की तरह शुरू में महंगा, लेकिन स्केल से सस्ता। शहर 50% ऊर्जा पैदल से ले सकेंगे।” वह दिन दूर नहीं – कल्पना कीजिए मुंबई लोकल या दिल्ली मेट्रो जहां कदम बिजली बनाते। सरकारें सब्सिडी दें तो भारत में जल्द संभव।








