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Bihar Election: लालू परिवार की ‘राजनीतिक रार’ से नीतीश की राह आसान?

पटना। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के भीतर लालू प्रसाद यादव के बच्चों के बीच चल रही राजनीतिक रार ने विपक्ष की एकता और विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह पारिवारिक खींचतान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनके नेतृत्व वाले सत्ताधारी गठबंधन (NDA/JD(U)) के लिए चुनावी वैतरणी पार करने की राह को नाटकीय ढंग से आसान बना रही है।

लालू परिवार की चुनौती: बिखराव में ताकत

वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में लालू परिवार की चुनौती सबसे अधिक ध्यान खींचती है। सैद्धांतिक रूप से, RJD बिहार में सबसे मजबूत विपक्षी दल है, लेकिन लालू प्रसाद यादव के जेल में होने के कारण पार्टी के भीतर तेजस्वी यादव (नेता प्रतिपक्ष) और तेज प्रताप यादव के बीच अक्सर सार्वजनिक तौर पर मतभेद सामने आते रहे हैं। यह अंदरूनी कलह न केवल कार्यकर्ताओं का मनोबल तोड़ती है, बल्कि मतदाताओं के बीच भी RJD को एक अस्थिर विकल्प के रूप में प्रस्तुत करती है।

हालांकि, लालू परिवार की चुनौती को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता:

  1. MY आधार (मुस्लिम-यादव बेस): परिवार के विवादों के बावजूद, RJD का पारंपरिक मुस्लिम-यादव वोट बैंक अभी भी काफी हद तक एकजुट है और लालू प्रसाद की भावनात्मक अपील के प्रति वफादार है।
  2. संगठनात्मक उपस्थिति: RJD की जड़ें ग्रामीण इलाकों में गहरी हैं। तेजस्वी यादव भले ही अनुभव में कच्चे हों, लेकिन वह पार्टी के युवा चेहरे हैं और संगठन को एकजुट रखने का प्रयास कर रहे हैं।
  3. जातीय ध्रुवीकरण: यदि चुनाव में ध्रुवीकरण होता है, तो RJD का कोर वोट बैंक उन्हें एक मजबूत चुनौती के रूप में बनाए रखेगा।

विपक्ष का बिखराव और ‘चक्रव्यूह’ तोड़ने में नाकामी

RJD की पारिवारिक कलह के बीच, विपक्ष का मोर्चा बुरी तरह से बिखरा हुआ दिखाई देता है।

  • कांग्रेस की सीमित भूमिका: कांग्रेस पार्टी, जो खुद बिहार में दशकों से हाशिए पर है, अपने दम पर RJD की नैया का खिवैया (हेल्म्समैन) बनने की क्षमता नहीं रखती। वह गठबंधन में केवल एक सहायक शक्ति हो सकती है, नेतृत्वकर्ता नहीं।
  • छोटे दलों की बेबसी: उपेंद्र कुशवाहा (RLSP) या जीतन राम मांझी (HAM) जैसे छोटे क्षेत्रीय दल, जो कभी NDA के सहयोगी रहे थे, उनके लिए एकजुट होकर भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के चक्रव्यूह (रणनीतिक जाल) को भेद पाना मुश्किल ही नहीं, बल्कि नामुमकिन दिख रहा है। नीतीश कुमार ने अपने सामाजिक इंजीनियरिंग (अति पिछड़ा वर्ग, महादलित और महिला वोट बैंक) को इतनी मज़बूती से साधा है कि छोटे दलों का आधार उनसे दूर छिटक चुका है।

नीतीश कुमार की रणनीति: स्थिरता बनाम सत्ता विरोधी लहर

नीतीश कुमार 15 वर्षों से सत्ता में हैं, ऐसे में सत्ता विरोधी लहर (Anti-incumbency) का सामना करना स्वाभाविक है। हालांकि, नीतीश कुमार इस लहर को पटखनी देने के लिए दो प्रमुख रणनीतियों पर सवार हैं:

  1. स्थिरता का चेहरा: RJD की पारिवारिक अराजकता के मुकाबले, नीतीश कुमार खुद को ‘सुशासन बाबू’ और स्थिरता के विश्वसनीय चेहरे के रूप में प्रस्तुत करते हैं। वे मतदाताओं को यह संदेश दे रहे हैं कि विपक्ष की अंदरूनी लड़ाई के कारण, केवल उनका गठबंधन ही बिहार को स्थिरता प्रदान कर सकता है।
  2. लाभार्थी वर्ग (Beneficiary Class): उनकी ‘हर घर नल का जल’, बिजली, सड़क और महिला सशक्तिकरण (साइकिल योजना, पंचायती राज में आरक्षण) जैसी योजनाओं से बना लाभार्थी वर्ग अभी भी उनके साथ मज़बूती से खड़ा है। यह वर्ग जातिगत समीकरणों को तोड़कर भी उन्हें वोट दे सकता है।
  3. साझेदारी का लाभ: भाजपा (BJP) के मज़बूत संगठनात्मक आधार और प्रधानमंत्री मोदी की राष्ट्रीय लोकप्रियता का लाभ भी उन्हें सत्ता विरोधी लहर से उबरने में मदद करेगा।

कुल मिलाकर बिहार के आगामी चुनावी परिदृश्य में, RJD का आंतरिक संघर्ष और विपक्ष की बिखरी हुई स्थिति नीतीश कुमार की राह आसान कर रही है। नीतीश कुमार अपनी कल्याणकारी योजनाओं और भाजपा की मज़बूत साझेदारी के बल पर, विपक्ष के खंडित नेतृत्व का लाभ उठाकर चुनावी वैतरणी पार करने की बेहतर स्थिति में दिखाई दे रहे हैं। लालू परिवार की चुनौती ज़मीनी स्तर पर भले ही मजबूत हो, लेकिन सार्वजनिक रार ने उसकी धार कुंद कर दी है।

Tesari Aankh
Author: Tesari Aankh

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