पटना, बिहार: (चुनावी रणभेरी) बिहार की धरती पर एक बार फिर से चुनावी महाभारत का शंखनाद हो चुका है। इस बार का विधानसभा चुनाव सिर्फ कुर्सी की लड़ाई नहीं, बल्कि विश्वास और जनमत की सबसे बड़ी परीक्षा है। इसकी सबसे बड़ी वजह है—2003 के बाद पहली बार हुआ गहन मतदाता पुनरीक्षण (SIR), जिसने बिहार में वोटरों की संख्या को 7.43 करोड़ तक पहुँचा दिया है। इन करोड़ों वोटरों में 1.63 करोड़ युवा हैं, जो इस बार के चुनाव का असली ‘गेम चेंजर’ साबित होंगे।
सामने है दो मजबूत ध्रुवों की टक्कर: एक तरफ अनुभवी नीतीश कुमार (NDA) और दूसरी तरफ युवा तुर्क तेजस्वी यादव (INDIA)।
बीस साल का गणित और नीतीश का कड़ा इम्तिहान
2005 से बिहार की सत्ता के केंद्र में रहे नीतीश कुमार के लिए यह चुनाव उनकी राजनीतिक विरासत को बचाने की सबसे कठिन चुनौती है। पिछले दो दशकों में वह गठबंधन बदलते रहे, लेकिन कुर्सी पर बने रहे।
- NDA का दाँव: नीतीश कुमार की ‘सुशासन’ की छवि को बीजेपी, लोजपा (रामविलास) और ‘हम’ का साथ मिला है। यह गठबंधन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय अपील पर भी बड़ा भरोसा कर रहा है।
- INDIA का दम: दूसरी ओर, पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के नेतृत्व में आरजेडी, कांग्रेस, वीआईपी और वामपंथी दल ‘रोज़गार’ और ‘युवा जोश’ के दम पर सत्ता परिवर्तन की ताल ठोक रहे हैं।

राष्ट्रीय राजनीति के लिहाज़ से भी यह चुनाव बेहद अहम है, क्योंकि 2024 के लोकसभा चुनावों में यूपी और महाराष्ट्र में बीजेपी को नुकसान हुआ था, लेकिन बिहार में एनडीए का किला मज़बूत रहा। अब राहुल गांधी की कोशिश है कि बिहार में इस गढ़ को भेदकर राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष के समीकरणों को मज़बूती दी जाए।
पिछले पाँच विधानसभा चुनावों के नतीजे: सीटों का गणित
पिछले दो दशकों में किस पार्टी का कद बढ़ा और किसका घटा, यह समझने के लिए पिछले पाँच चुनावों के नतीजे देखना ज़रूरी है।
1. बिहार विधानसभा चुनाव 2020: आरजेडी का उभार
विश्लेषण: आरजेडी ने सबसे बड़ी एकल पार्टी बनकर अपना दम दिखाया। वहीं, जेडीयू की सीटें 43 पर सिमट गईं, जो उनके घटते जनाधार का संकेत था, बावजूद इसके नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने रहे।
2. बिहार विधानसभा चुनाव 2015: महागठबंधन का जलवा
विश्लेषण: बीजेपी ने भले ही सबसे ज़्यादा वोट प्रतिशत हासिल किया, लेकिन नीतीश कुमार के ‘महागठबंधन’ ने सीटों के मामले में बीजेपी को बड़ा झटका दिया।
3. बिहार विधानसभा चुनाव 2010: नीतीश का शिखर
विश्लेषण: यह चुनाव नीतीश कुमार के करियर का चरम था, जब उन्होंने बीजेपी के साथ मिलकर दो-तिहाई बहुमत हासिल किया था।
https://x.com/LJP4India/status/1978206732787515678
4. अक्टूबर 2005 और फरवरी 2005 के नतीजे
2005 के चुनावों ने दिखाया कि आरजेडी का वोट शेयर (अक्टूबर में 23.45%) मज़बूत बना रहा, लेकिन सीटें खोकर वह सत्ता से बाहर हो गई। अक्टूबर के चुनाव में जेडीयू (88) और बीजेपी (55) ने मिलकर पहली बार स्थिर सरकार बनाई।

इस बार का एक्स-फैक्टर: युवा वोटर और सत्ता परिवर्तन की संभावना
पिछला डेटा बताता है कि आरजेडी के पास एक मज़बूत वोट आधार (Core Vote) है, जबकि नीतीश कुमार सीटों के लिए गठबंधन के जादू पर निर्भर रहे हैं।
https://tesariaankh.com/bihar-nda-seat-sharing-bjp-jdu-politics/
इस बार का चुनाव दो प्रमुख कारणों से निर्णायक होगा:
- युवाओं का गुस्सा और आशा: राज्य के 1.63 करोड़ युवा मतदाता—जो रोज़गार, माइग्रेशन और बेहतर शिक्षा की आस लगाए बैठे हैं—किस गठबंधन को चुनते हैं, यही निर्णायक होगा। तेजस्वी यादव का फोकस सीधे इन्हीं युवाओं पर है।
- SIR की सटीकता: मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण ने सुनिश्चित किया है कि फर्जी या दोहरी वोटिंग की गुंजाइश कम होगी, जिससे वास्तविक जनमत और अधिक स्पष्ट रूप से सामने आएगा।
संक्षेप में, यह चुनाव अनुभवी स्थिरता (NDA) और आशावादी परिवर्तन (INDIA) के बीच सीधा संघर्ष है। क्या नीतीश कुमार एक बार फिर से सभी समीकरणों को साधकर कुर्सी बचा पाएंगे, या बिहार के युवा तेजस्वी यादव को सत्ता परिवर्तन का मौका देंगे? इसका जवाब 7.43 करोड़ मतदाताओं के हाथ में है।








