मुंबई। भारतीय सिनेमा के इतिहास में ऐसे कम ही मौके आते हैं, जब किसी एक ही तारीख पर शोहरत के दो सितारे—जो सगे भाई भी हों—जन्म और अवसान के रूप में याद किए जाते हों। 13 अक्टूबर ऐसी ही एक तारीख है। यह दिन हिन्दी सिनेमा के दो महान स्तंभों— अशोक कुमार (दादामुनि) और किशोर कुमार—से जुड़ा है। एक ओर आज ‘दादामुनि’ की जयंती मनाई जाती है, तो दूसरी ओर आज ही ‘किशोर दा’ की पुण्यतिथि है। इस अद्भुत संयोग ने कुमार बंधुओं की विरासत को एक अद्वितीय भावनात्मक और कलात्मक आयाम दिया है।
दादामुनि: सहज अभिनय के ‘सदाबहार’ नायक
पीढ़ी दर पीढ़ी के कलाकारों के लिए प्रेरणास्रोत रहे अशोक कुमार गांगुली, जिन्हें प्यार से ‘दादामुनि’ कहा गया, ने भारतीय सिनेमा में अभिनय की एक नई धारा स्थापित की।
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- अभिनय का कीर्तिमान: 13 अक्टूबर, 1911 को जन्मे अशोक कुमार ने 60 से अधिक वर्षों के अपने करियर में 300 से अधिक फिल्मों में काम किया। उनका अभिनय सहज, स्वाभाविक और आडंबरहीन होता था। उन्होंने ‘अछूत कन्या’ जैसी शुरुआती क्लासिक से लेकर ‘महल’, ‘क़िस्मत’, ‘आशीर्वाद’ (जिसके लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार मिला) और बाद में ‘ख़ूबसूरत’ जैसी फिल्मों में अपने किरदारों को अमर कर दिया।
- कला का आधार: वह स्टूडियो सिस्टम से निकलकर आए पहले सुपरस्टार्स में से थे, जिन्होंने नायक, खलनायक, चरित्र अभिनेता, हर भूमिका को अपनी सरल मुस्कान और आँखों की गहराई से जीवंत कर दिया। दादामुनि ने ही कुमार परिवार को सिनेमाई विरासत से जोड़ा और अपने छोटे भाई (किशोर) के लिए भी रास्ता बनाया।
किशोर दा: गायकी के जादूगर और बहुमुखी प्रतिभा के धनी
अशोक कुमार के छोटे भाई, आभास कुमार गांगुली, जो दुनिया के लिए किशोर कुमार बने, एक ऐसे कलाकार थे जिनकी बहुमुखी प्रतिभा की कोई सीमा नहीं थी।
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- संगीत का जादू: 13 अक्टूबर, 1987 को दुनिया को अलविदा कहने वाले किशोर कुमार एक महान गायक, अभिनेता, निर्देशक, संगीतकार और पटकथा लेखक थे। उनकी आवाज़ में एक ऐसा जादू था, जो हर मूड और भावना को छू जाता था—चाहे वह ‘मेरे सपनों की रानी’ का उत्साह हो या ‘जीवन के सफ़र में राही’ का दार्शनिक भाव।
- अद्वितीय अभिनय: गायकी में शिखर पर होने के बावजूद, किशोर कुमार ने ‘चलती का नाम गाड़ी’, ‘पड़ोसन’ और ‘हाफ़ टिकट’ जैसी फिल्मों में अपने हास्य और कॉमिक अभिनय से भी एक अद्वितीय छाप छोड़ी। उनका अभिनय उनके गायन जितना ही बेफ़िक्र और ऊर्जावान था।
एक ही तारीख, दो अमर विरासत
यह एक गहरा भावनात्मक संयोग है कि जिस दिन बड़े भाई (अशोक कुमार) की जयंती होती है, उसी दिन छोटे भाई (किशोर कुमार) की पुण्यतिथि होती है। यह तारीख सिर्फ एक तिथि नहीं, बल्कि कला की दो पीढ़ियों के संगम का प्रतीक है:
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- अशोक कुमार: ने जहां अद्वितीय अभिनय की नींव रखी और भारतीय सिनेमा के ‘स्वर्ण युग’ को परिभाषित किया, वहीं
- किशोर कुमार: ने संगीत और मनोरंजन के कीर्तिमान स्थापित किए, जो आज भी नई पीढ़ियों के लिए एक मानक हैं।
दोनों भाइयों ने अलग-अलग विधाओं में रहते हुए भी, सिनेमा की दुनिया पर अपनी अमिट छाप छोड़ी। 13 अक्टूबर का यह संयोग हमें याद दिलाता है कि भले ही जीवन चक्र चलता रहता है, लेकिन महान कलाकारों की कला और विरासत हमेशा जीवित रहती है। वे न केवल अपने परिवार, बल्कि पूरे देश के लिए अद्वितीय गौरव का विषय हैं।








