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राहुल गांधी की चेतावनी: हमारे बच्चे जहर भरी हवा में सांस ले रहे हैं” — वायु प्रदूषण बना भारत का असली स्वास्थ्य आपातकाल

हर माँ जो मुझे मिलती है, कहती है — “मेरा बच्चा सांस तक नहीं ले पा रहा, जहर भरी हवा में पल रहा है।” उनकी थकान, डर और गुस्सा — इन सबका कारण सिर्फ मौसम नहीं, वह हवा है जिसमें हमारा देश हर दिन साँस ले रहा है। पिछले दिनों, राहुल गांधी ने इसी दर्द को देश की संसद तक पहुँचाया — कहा, “Modi-जी, आपके बच्चों की तरह हमारे बच्चे धुआँ नहीं, साफ हवा के हकदार हैं।” उन्होंने तुरंत एक पूरे संसदीय बहस और कड़े, लागू-योग्य एक्शन प्लान की मांग की। लेकिन सवाल वही है — क्या सिर्फ मांग करना पर्याप्त है? या अब वक्त आ गया है कि हम इस स्वास्थ्य आपातकाल को गंभीरता से लें — अपने बच्चों के भविष्य के लिए।

वायु प्रदूषण की हकीकत: आंकड़े और सच्चाई

हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वायु प्रदूषण ही 2021 में कम-से-कम 1,69,400 बच्चों (5 वर्ष से कम आयु) की मौत का कारण बना। यानी रोजाना औसतन 464 बच्चे प्रदूषित हवा के कारण दम तोड़ते हैं। वैश्विक स्तर पर 2021 में वायु प्रदूषण से करीब 8.1 मिलियन मौतें हुई — जिसमें वयस्क व बुज़ुर्ग ही नहीं, बच्चों और नवजातों की जानें भी शामिल हैं। वायु प्रदूषण अब दुनिया में मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण बन चुका है — और विशेष रूप से बच्चों के लिए, यह कुपोषण के बाद दूसरा प्रमुख जोखिम है।मौसम, औद्योगीकरण, वाहन उत्सर्जन, निर्माण-धूल, और दीर्घकालीन औद्योगिक व घरेलू प्रदूषण — ये सभी मिलकर हवा को जहरीला बना देते हैं।वायु प्रदूषण का असर सिर्फ फेफड़ों तक नहीं; यह हृदय, मस्तिष्क और अन्य अंगों तक पहुंचता है — बच्चों में पल्मोनरी, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस तथा दीर्घकालीन स्वास्थ्य खतरों का खतरा बन जाता है।

Mothers’ Cry: जब बच्चों की सांस बन जाती है दर्द

हर दिन हजारों माँओं के लिए मास्क, घर के अंदर रहने की जद्दोजहद और बच्चों की खांसी-कफ उनकी रोज़मर्रा की हकीकत बन चुकी है। रात में सोते वक्त भी बच्चों की नाक बंद, आंखों में जलन, सांस फूलना — ये तमाम बातें आम हो चुकी हैं। कई गरीब परिवारों के पास एयर प्यूरीफायर या फिल्टर लगाने की सुविधा नहीं; उन्हें बच्चों को सिरा-फिरा मास्क पहनाना पड़ता है, और बाहर खेलने से रोकना पड़ता है। क्या यही हमारी देश की पीढ़ी है जो – विकास की बात करने वाले नेता, मोटे आंकड़े, GDP ग्रोथ — सब देख कर आगे बढ़ते रहते हैं, लेकिन हमारे बच्चों की साँसें गिनने से बच जाते हैं?

https://x.com/RahulGandhi/status/1994287084035821852?s=20

 राहुल गांधी की मांग — सिर्फ बयान नहीं, जिम्मेदारी चाहिए

राहुल गांधी ने सही पूछा — “भारत के बच्चे गहरे स्वास्थ्य संकट में हैं; संसद में बहस क्यों नहीं होती?”

उनकी मांग है तुरंत एक विशद संसदीय बहस, समयबद्ध, कड़ा और लागू-योग्य एक्शन प्लान — सिर्फ घोषणाएं नहीं, प्रदूषण नियंत्रण: वाहन उत्सर्जन, औद्योगिक धुआँ, निर्माण-धूल, घरेलू ईंधन, आदि पर वास्तविक नियंत्रण, बच्चों, बुज़ुर्गों, व संवेदनशील समूहों के लिए स्वास्थ्य-सुरक्षा रणनीति, अगर हम चाहें कि अगली पीढ़ी ज़िंदा रहे — तो अब बहस, योजना और कार्रवाई की ज़रूरत है।

क्या हो सकता है समाधान — कुछ ठोस कदम

  1. महानगरीय योजनाओं में हरित ज़ोन — पेड़, कार्बन अवशोषक महत्त्वपूर्ण।

  2. वाहन उत्सर्जन नियंत्रण व इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को बढ़ावा

  3. औद्योगिक धुआँ, निर्माण-धूल, कचरा जलाने आदि पर सख्त नियम

  4. स्वच्छ ईंधन, कुकिंग गैस एवं इंडोर वेंटिलेशन — खासकर गरीब इलाकों में।

  5. सार्वजनिक स्वास्थ्य सर्वे — बच्चों की लंग स्वास्थ्य, श्वास-रोग, हृदय, आदि की नियमित निगरानी।

  6. स्कूलों-कल्यों में मास्क और एयर प्यूरीफायर — जब तक हवा साफ नहीं होती।

  7. स्वचालित वायु-गुणवत्ता निगरानी + पारदर्शी डेटा + जनता के लिए अलर्ट

यह कोई मौसम-समस्या नहीं — यह बच्चों का भविष्य है

वायु प्रदूषण सिर्फ आँकड़ों का विषय नहीं है। यह हर माँ की चिंता, हर बच्चे की साँस, हर परिवार का डर है। हमारी ज़िम्मेदारी है नेताओं कि वे सिर्फ बयान न दें, ज़िम्मेदारी लें। प्रशासन कि प्लान बनाकर लागू करें। समाज कि जागरूक हो, आवाज़ उठाए। हम कि अपनी पीढ़ी की ज़िंदगी बचाने के लिए सजग और सक्रिय हों। क्योंकि जब स्वास्थ्य आपातकाल बने  तो कोई बहाना नहीं, सिर्फ कार्रवाई चाहिए।

https://tesariaankh.com/yogi-warning-conversion-drug-foreign-attack/

Tesari Aankh
Author: Tesari Aankh

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