यूपी भाजपा अध्यक्ष रेस: उत्तर प्रदेश भाजपा में नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति का सस्पेंस कुछ ही दिनों में खत्म होने वाला है। केंद्रीय पर्यवेक्षक पियूष गोयल और विनोद तावड़े 12-13 दिसंबर को नामांकन प्रक्रिया पूरी करेंगे, जबकि 14 दिसंबर को औपचारिक ऐलान हो सकता है। राजनीतिक जानकारों के अनुसार, गृह मंत्री अमित शाह के करीबी और केंद्रीय राज्य मंत्री बंवरीलाल वर्मा (बीएल वर्मा) इस रेस में सबसे मजबूत दावेदार हैं, जिनकी नियुक्ति से पार्टी के ओबीसी समीकरण मजबूत होंगे।
अमित शाह की पसंद, योगी की असहमति?
सूत्र बताते हैं कि अमित शाह बीएल वर्मा को निर्विरोध अध्यक्ष बनाने के पक्ष में हैं, जो उनकी संगठनात्मक क्षमता और पश्चिमी यूपी में लोध समुदाय पर पकड़ को देखते हुए रणनीतिक चॉइस माना जा रहा है। हालांकि, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ केंद्रीय मंत्री पंकज चौधरी के नाम पर सहमत नहीं दिख रहे, जिससे आंतरिक समीकरणों में हलचल तेज है। अगर वर्मा चुने जाते हैं तो यह शाह के प्रभाव का संकेत होगा, अन्यथा पार्टी की भविष्य रणनीति पर सवाल उठेंगे।
कौन हैं बीएल वर्मा? संगठन से केंद्र तक का सफर
बदायूं जिले के किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले बंवरीलाल वर्मा 1961 में पैदा हुए और 1980 के दशक से भाजपा के साधारण कार्यकर्ता के रूप में सक्रिय रहे। वे भाजपा युवा मोर्चा से शुरू कर राज्य उपाध्यक्ष, ब्रज क्षेत्र अध्यक्ष और राष्ट्रीय ओबीसी मोर्चा उपाध्यक्ष तक पहुंचे। पूर्व सीएम कल्याण सिंह के करीबी माने जाने वाले वर्मा को 2018 में यूपी राज्य निर्माण एवं आधारभूत विकास निगम का अध्यक्ष बनाया गया, जहां उन्हें राज्य मंत्री का दर्जा मिला।
2020 में राज्यसभा सदस्य चुने गए वर्मा ने अपनी संगठन क्षमता से प्रभावित कर जून 2024 में मोदी 3.0 सरकार में राज्य मंत्री (सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता तथा उपभोक्ता मामले) बने। पश्चिमी यूपी के लोधी ओबीसी समुदाय के प्रमुख चेहरे के रूप में वे सपा के पीडीए फॉर्मूले का जवाब देने के लिए उपयुक्त माने जा रहे हैं।
भाजपा की भविष्य रणनीति पर असर
2024 लोकसभा चुनावों में ओबीसी नाराजगी झेल चुकी भाजपा अब विधानसभा चुनावों से पहले जातिगत संतुलन साधने पर जोर दे रही है। वर्मा की नियुक्ति से पश्चिमी यूपी में लोध-राजपूत वोट एकजुट हो सकते हैं, जबकि संगठन को जमीनी मजबूती मिलेगी। जानकारों का मानना है कि यह कदम न केवल विपक्षी गठबंधन को काउंटर करेगा, बल्कि शाह की रणनीतिक पकड़ को भी रेखांकित करेगा।
पश्चिमी यूपी में 2024 लोकसभा चुनावों में भाजपा ने कमजोर प्रदर्शन किया, जो पार्टी के लिए चिंता का विषय बना। बीएल वर्मा की संभावित अध्यक्षता से इस क्षेत्र में ओबीसी वोटों को मजबूत करने की उम्मीद है।
पश्चिमी यूपी का चुनावी नतीजा
पश्चिमी यूपी (सहारनपुर से गाजियाबाद तक, लगभग 16-26 सीटें) में भाजपा 2019 की 6-18 सीटों से गिरकर 2024 में सिर्फ 4 सीटें जीत सकी। एनडीए का वोट शेयर 2019 के 53.8% से घटकर 47.66% रह गया, यानी करीब 6% की गिरावट। सपा-कांग्रेस गठबंधन ने 11 सीटें हासिल कीं, जबकि आरएलडी ने 2।
बीएल वर्मा का प्रभाव
बदायूं (पश्चिमी यूपी) के लोधी ओबीसी नेता बीएल वर्मा इस क्षेत्र के लोध समुदाय पर मजबूत पकड़ रखते हैं। उनकी अध्यक्षता से भाजपा का ओबीसी वोट सपा के पीडीए फॉर्मूले का मुकाबला कर सकेगा, खासकर जाट-लोध-राजपूत संतुलन साधने में। इससे 2027 विधानसभा चुनावों से पहले संगठन मजबूत होगा।
आंकड़े बताते हैं कमजोरी
2024 लोकसभा में पश्चिमी यूपी (सहारनपुर से गाजियाबाद तक 17-26 सीटें) भाजपा का किला ढह गया। 2019 की 18 सीटों से गिरकर सिर्फ 4 जीतीं, जबकि सपा-कांग्रेस ने 11 और आरएलडी ने 2 हासिल कीं। वोट शेयर 53.8% से घटकर 47.66% रह गया—यानी 6% की भारी गिरावट। जाट, मुस्लिम और ओबीसी वोटों का ध्रुवीकरण विपक्ष के पक्ष में गया।
बीएल वर्मा का पश्चिमी यूपी पर प्रभाव: लोधी वोटों का नया हथियार
बदायूं के लोधी ओबीसी नेता बीएल वर्मा इस क्षेत्र के लोध समुदाय पर मजबूत पकड़ रखते हैं, जो सपा के पीडीए फॉर्मूले का सीधा जवाब बन सकते हैं। उनकी अध्यक्षता से जाट-लोध-राजपूत समीकरण सधेगा, जो 2024 में भाजपा के लिए नुकसानदेह साबित हुआ। केंद्रीय मंत्री बनने के बाद उनकी संगठन क्षमता और बढ़ी है, जो 2027 विधानसभा से पहले पश्चिमी यूपी को मजबूत करेगी।
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योगी vs शाह समीकरण: पंकज चौधरी पर असहमति ने बढ़ाई टेंशन
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ केंद्रीय मंत्री पंकज चौधरी के नाम पर सहमत नहीं, जबकि अमित शाह बीएल वर्मा को निर्विरोध थोपने को तैयार। अगर वर्मा बने तो शाह का प्रभाव बढ़ेगा, वरना योगी खेमे की जीत मानी जाएगी—भाजपा की भविष्य रणनीति पर बड़ा संकेत। कल्याण सिंह के पुराने सहयोगी वर्मा को राज्यसभा से केंद्र तक का सफर तय करने वाले संगठन प्रचारक के तौर पर जाना जाता है।
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रणनीतिक फायदे: ओबीसी विस्तार से 2027 की तैयारी
2024 की ओबीसी नाराजगी सुधारने के लिए वर्मा की नियुक्ति पार्टी को जमीनी मजबूती देगी। पश्चिमी यूपी में लोधी-ओबीसी पैठ बढ़ाकर सपा गठबंधन को चुनौती मिलेगी, साथ ही पूर्वांचल-अवध के संतुलन पर भी असर पड़ेगा। जानकारों का मानना है, यह कदम भाजपा को ‘डबल इंजन’ की कमजोरी दूर करने में मदद करेगा।








