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रुपये की चुपचाप गिरावट: टैरिफ संकट में छुपी रणनीति?

सोचिए, आपकी जेब से रोज़ाना थोड़ा-थोड़ा पैसा निकल रहा हो, लेकिन सरकार कहे “चिंता मत करो, ये तो अच्छा ही हो रहा है।” ठीक यही हो रहा है भारतीय रुपये के साथ। दिसंबर 2025 में डॉलर के मुकाबले रुपया 90.43 तक लुढ़क गया, 2025 में कुल 5% से ज्यादा की गिरावट। फिर भी मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) अनंत नागेश्वरन कहते हैं, “नींद उड़ाने वाली बात नहीं, अगले साल वापस आ जाएगा।” RBI भी ‘सॉफ्ट टच’ अप्रोच अपना रहा – ज्यादा हस्तक्षेप नहीं, क्योंकि ये गिरावट अमेरिकी ट्रंप प्रशासन के 50% टैरिफ के झटके को काटने का काम कर रही है। क्या ये जानबूझकर रणनीति है? व्यापार संतुलन बनाने का तरीका? या सिर्फ मजबूरी? आइए विस्तार से समझें।​

भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे तेज बढ़ती हुई है – IMF के अनुसार FY26 में 6.6% विकास। लेकिन रुपये की गिरावट ने आम आदमी को परेशान कर दिया। पेट्रोल महंगा, आयातित तेल का बोझ, विदेश यात्रा का खर्चा दोगुना। फिर भी सरकार और RBI चुपचाप देख रहे। क्यों? क्योंकि ये गिरावट टैरिफ संकट का ‘बफर’ बन रही है। ट्रंप 2.0 के आने के बाद अमेरिका ने भारत पर 50% तक टैरिफ लगा दिए, जिससे US निर्यात 37.5% गिर गया। व्यापार घाटा $41-42 अरब पर पहुंचा। लेकिन कमजोर रुपया निर्यातकों को एशियाई प्रतिद्वंद्वियों (चीन, वियतनाम) पर 5-6% सस्ता बना रहा। HSBC की मुख्य अर्थशास्त्री प्रांजुल भंडारी कहती हैं, ये “टैरिफ की दवा” है – टैरिफ निर्यात महंगा करता है, गिरता रुपया उसे सस्ता। ये रिपोर्ट दोनों पहलुओं का विश्लेषण करती है: लाभ, नुकसान, रणनीति और भविष्य।​

रुपये की गिरावट का सफर: 90 पार कैसे पहुंचा?

2025 की शुरुआत में रुपया 85-86 के आसपास स्थिर था। ट्रंप के नवंबर 2024 चुनाव जीतने के बाद डॉलर मजबूत हुआ। अमेरिकी फेड ने ब्याज दरें ऊंची रखीं, विदेशी निवेशक (FPI) भारत से $1.48 लाख करोड़ निकाल ले गए। ऊपर से ट्रंप टैरिफ: स्टील, एल्यूमीनियम, टेक्सटाइल पर 50%, फार्मा और IT पर भी खतरा। भारत का US निर्यात $80 अरब से घटकर $50 अरब रह गया। परिणाम? रुपया एशिया की सबसे खराब मुद्रा बना – 5.2% वार्षिक गिरावट।​

RBI ने हस्तक्षेप किया, लेकिन सीमित। जनवरी से नवंबर तक सिर्फ $30 अरब डॉलर बेचे, फॉरेक्स रिजर्व $690 अरब पर स्थिर। क्यों? क्योंकि आक्रामक बचाव से रिजर्व खत्म हो जाते, और गिरावट निर्यात के लिए फायदेमंद। CEA राजीव कुमार ने कहा, “मेजर करेंसी के मुकाबले गिरावट अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी।” ये ‘रणनीतिक अवमूल्यन’ जैसा लगता है, जैसे चीन 2015 में करता था। लेकिन भारत इसे स्वीकार नहीं करेगा – WTO नियम तोड़ सकता। फिर भी, वास्तविक प्रभाव यही हो रहा।​

क्यों नहीं कोई चिंता? टैरिफ की काट बन रही कमजोरी

सरकार की रणनीति साफ: चिंता न दिखाओ, संतुलन बनाओ। CEA नागेश्वरन ने कहा, मुद्रास्फीति नियंत्रित (4-5%), निर्यात बढ़ रहा, CAD (करंट अकाउंट डेफिसिट) 1.5% पर स्थिर। टैरिफ ने US बाजार बंद किया, लेकिन रुपया सस्ता होकर अन्य बाजार खोल रहा। Q2 FY26 में कुल निर्यात 9% चढ़ा – स्पेन (+15%), UAE (+12%), चीन (+6.7%)। टेक्सटाइल निर्यातक अब अमेरिकी खरीदारों से लागत शेयर कर रहे: टैरिफ 50%, लेकिन रुपया 5% सस्ता, कुल मिलाकर 45% बोझ।​

HSBC रिपोर्ट कहती है, कमजोर रुपया टैरिफ ‘ब्लंट’ करता है। अगर रुपया स्थिर रहता, निर्यात 20% और गिरता। अब फार्मा (जनरिक दवाएं) और ऑटो पार्ट्स प्रतिस्पर्धी बने। श्रम-गहन क्षेत्रों में 2 लाख नौकरियां बचीं। RBI गवर्नर ने कहा, “सभी देश प्रभावित होंगे, लेकिन भारत रिजर्व मजबूत।” ये व्यापार संतुलन का तरीका: आयात मांग घटे (तेल महंगा), निर्यात बढ़े। परिणाम? व्यापार घाटा बढ़ा लेकिन CAD नियंत्रित।​

विविधीकरण तेज: जुलाई 2025 का इंडिया-UK FTA, UAE CEPA विस्तार। सरकार का ‘निर्यात प्रोत्साहन मिशन’ – MSME को क्रेडिट गारंटी, टैक्स कट। FDI $50 अरब आया, 2025 में $100 अरब लक्ष्य। कुल मिलाकर, गिरावट टैरिफ का जवाब – दर्दनाक लेकिन रणनीतिक।​

आम आदमी पर दोहरी मार: किचन से कार तक असर

लेकिन ये ‘रणनीति’ आम आदमी के लिए बोझ। 87% कच्चा तेल डॉलर में आयात – रुपया 5% गिरा तो पेट्रोल ₹10-15 महंगा। डीजल, उर्वरक, एसी, फ्रिज – सब 7-10% महंगे। किचन में खाद्य तेल (पाम ऑयल आयात), सब्जियां प्रभावित। व्यापार घाटा $41.68 अरब रिकॉर्ड। बाह्य ऋण $682 अरब – servicing cost 5% ऊंची। FDI बहिर्गमन से शेयर बाजार लड़खड़ाया।​

https://x.com/PMishra_Journo/status/1961677700978049243?s=20

मुद्रास्फीति जोखिम: RBI का लक्ष्य 4%, लेकिन तेल से 6% तक जा सकता। घरेलू मांग दबेगी – कार, मोबाइल बिक्री 10% घटी। MSME उधारी महंगी। लेकिन सकारात्मक: निर्यात क्षेत्रों में वेतन बढ़ा, ग्रामीण रोजगार स्थिर। सरकार सब्सिडी बढ़ा रही – उर्वरक पर ₹50,000 करोड़। लेकिन लंबे समय में सुधार जरूरी।​

लाभ vs नुकसान: तुलनात्मक विश्लेषण

पहलू लाभ (टैरिफ के विरुद्ध) नुकसान (आर्थिक दबाव)

RBI-सरकार रणनीति: संतुलित हस्तक्षेप और भविष्य

RBI का ‘सॉफ्ट टच’: अस्थिरता रोको, लेकिन गिरावट सहो। $30 अरब डॉलर बेचे, लेकिन डॉलर खरीद बंद। सरकार: UK FTA, MSME समर्थन (₹1 लाख करोड़ क्रेडिट), लॉजिस्टिक्स (गति शक्ति)। निर्यात लक्ष्य $1 ट्रिलियन। IMF: 6.6% ग्रोथ, लेकिन टैरिफ से 0.5% रिस्क।​

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भविष्य? फेड रेट कट (दिसंबर 2025 से) डॉलर कमजोर करेगा। 2026 में रुपया 87-88 संभव। लेकिन जरूरी: तेल आयात घटाओ (रिन्यूएबल), निर्यात विविधीकरण, FDI आकर्षण। अगर नहीं, तो बोझ बनेगा।​

दर्दनाक हथियार या आवश्यक बफर?

रुपये की चुपचाप गिरावट टैरिफ जंग का दर्दनाक लेकिन जरूरी हथियार। व्यापार संतुलन बना रही – निर्यात बढ़ा, CAD नियंत्रित। सरकार का ‘न चिंता’ स्टांस रणनीतिक। लेकिन आम आदमी के किचन पर मार, महंगाई जोखिम। लंबे सुधार (विविधीकरण, रिजर्व मजबूती) से बफर बनेगी, वरना बोझ। CEA सही कहते हैं – अगला साल राहत लाएगा, अगर सतर्क रहें।​

Tesari Aankh
Author: Tesari Aankh

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