Bihar Election 2025: बिहार की राजनीति हमेशा से जातीय समीकरणों, सामाजिक ताने-बाने और पारिवारिक परंपराओं के इर्द-गिर्द घूमती रही है। 2025 के विधानसभा चुनाव की हवा में भी यह परंपरा महसूस की जा सकती है। पटना जिले की जिन सीटों पर राज्य की राजनीति की दिशा तय होती है, उनमें फतुहा, मसौढ़ी, फुलवारी और मनेर जैसी सीटें सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं। इन क्षेत्रों की जमीन जितनी ऐतिहासिक है, उतना ही विविध राजनीतिक रंग भी समेटे हुए है।
फतुहा: यादव राजनीति का केंद्र, राजद का किला
पटना साहिब लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली फतुहा विधानसभा सीट 1957 से अब तक पहचानी जाती रही है अपनी जातीय गोलबंदी के लिए। औद्योगिक विरासत और धार्मिक-सांस्कृतिक धरा के बावजूद, यहां की राजनीतिक नब्ज पूरी तरह से जातीय समीकरणों के आधार पर धड़कती है।
2020 के आंकड़ों के अनुसार, यहां करीब 2.71 लाख मतदाता हैं, जिनमें अनुसूचित जाति के मतदाता लगभग 18.59% हैं। मुस्लिम मतदाता केवल 1.4% हैं, जबकि यादव और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का प्रभाव निर्णायक माना जाता है।
डॉ. रामानंद यादव, राजद के कद्दावर नेता, इस सीट को लगातार तीन बार जीतकर एक “अभेद्य किला” बना चुके हैं। 2010 से लेकर अब तक उन्हें कोई हरा नहीं पाया। 2020 में उन्होंने भाजपा के सत्येंद्र सिंह को 19,370 वोटों से, जबकि 2015 में लोजपा के प्रतिद्वंदी को 30,402 वोटों से मात दी। उनका जनाधार सिर्फ जातीय समीकरणों तक सीमित नहीं, बल्कि क्षेत्र के विकास के मुद्दों से भी जुड़ा है।
इस बार उनके सामने लोजपा (रामविलास) की युवा उम्मीदवार रूपा कुमारी हैं, जो महिला प्रतिनिधित्व की नई मिसाल बनना चाहती हैं। चुनावी मुकाबला दिलचस्प है — एक ओर अनुभवी नेता की पकड़, दूसरी ओर युवा चेहरे की उम्मीद।
फतुहा की धरती की गहराई इतिहास में उतनी ही है जितनी धर्म में। यह वही स्थान है जहां से भगवान राम ने मिथिला की यात्रा शुरू की थी और सूफी संतों की यादें कच्ची दरगाह में आज भी गूंजती हैं। यही सांस्कृतिक मिश्रण फतुहा को बिहार की राजनीति का “धार्मिक-राजनीतिक संगम” बनाता है।
मसौढ़ी: तारेगना से तारों की गिनती, नए समीकरण
पटना ज़िले के दक्षिण में स्थित मसौढ़ी केवल ऐतिहासिक दृष्टि से नहीं, बल्कि राजनीतिक दृष्टि से भी विशेष महत्व रखती है। यहाँ का नाम “तारेगना” यानी तारों की गणना इस इलाके की प्राचीन वैज्ञानिक विरासत की कहानी कहता है — कहा जाता है कि यहीं महान गणितज्ञ आर्यभट्ट ने अपनी वेधशाला स्थापित की थी।
आज यह सीट राजनीतिक वेधशाला बन चुकी है। यह अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षित सीट है और बीते एक दशक से राजद की रेखा देवी इसका प्रतीकात्मक चेहरा बन चुकी हैं। 2020 में उन्होंने जदयू की नूतन पासवान को भारी अंतर से पराजित किया था।
आरक्षण के बाद से यहां की राजनीति पूरी तरह राजद बनाम जदयू की हो गई है। यादव और दलित मतदाताओं का साझा समीकरण राजद को बार-बार बढ़त दिला रहा है।
लेकिन इसके परे, मसौढ़ी की सबसे बड़ी चुनौतियां हैं – स्वास्थ्य, शिक्षा और कृषि। पुनपुन नदी के किनारे बसे इस इलाके में खेती तो भरपूर है, पर स्वास्थ्य सुविधाएं कमजोर और रोजगार के अवसर सीमित हैं। रेखा देवी का समाजसेवी चेहरा इन्हीं मुद्दों को संबोधित करता है, जो उनके लिए “जनता से जुड़ाव” का आधार है।
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फुलवारी: जहां वाम, सामाजिक न्याय और दलित चेतना
पटना की सीमा से लगा हुआ फुलवारी विधानसभा क्षेत्र जाति और विचारधारा का संगम है। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित यह सीट कभी श्याम रजक के वर्चस्व के कारण जानी जाती थी, जो अपने राजनीतिक जीवन में राजद, जदयू और जनता दल — सभी दलों में रह चुके हैं।
2020 में यह सीट सीपीआई (एमएल-लिबरेशन) के गोपाल रविदास ने जीती — यह उस समय का सबसे बड़ा राजनीतिक उलटफेर था। उनका वामपंथी संगठनात्मक ढांचा ग्रामीण इलाकों में बेहद मजबूत है।
यह सीट सामाजिक दृष्टि से मिश्रित है — दलित मतदाता 23.45%, मुस्लिम मतदाता लगभग 15%, जबकि यादव, पासवान और रविदास समुदाय निर्णायक स्थिति में हैं। वाम दल यहां जमीन से जुड़े मुद्दों — मजदूरी, कृषि सुधार, और दलित अधिकार — पर अपनी पकड़ बनाए हुए हैं, जबकि राजद जातीय जुड़ाव के सहारे फिर वापसी करना चाहती है।
पुनपुन और फुलवारी शरीफ की सांस्कृतिक धारा भी यहां की सियासत का अभिन्न हिस्सा है — जहां एक ओर पुनपुन नदी हिंदू तर्पण-श्राद्ध का प्रतीक है, वहीं फुलवारी शरीफ सूफी शिक्षा और इस्लामी संस्कृति की पहचान। यही संयोजन इसे अनोखा राजनीतिक क्षेत्र बनाता है।
मनेर: राजनीति की मिठास और कड़वाहट का संगम
“मनेर का लड्डू” जितना मीठा है, यहां की राजनीति उतनी ही खट्टी-मीठी। गंगा और सोन के संगम पर बसा मनेर, राजद के लिए यादव राजनीति का मजबूत केंद्र रहा है।
कभी कांग्रेस का गढ़ रहा यह क्षेत्र अब भाई वीरेंद्र के कारण राजद की पहचान बन चुका है। उन्होंने 2010 से 2020 तक लगातार तीन बार जीत हासिल की, हर बार अंतर बढ़ाते हुए। 2020 में उन्होंने भाजपा के निखिल आनंद को 32,917 वोटों से हराया।
मनेर के राजनीतिक इतिहास में यादव परिवारों की निर्णायक भूमिका रही है — कुल आठ बार इस परिवार के सदस्य यहां से विधायक रह चुके हैं। हालांकि, 2024 लोकसभा चुनाव में लालू यादव की बेटी मीसा भारती की जीत ने राजद में नई ऊर्जा भरी है, जिसने मनेर विधानसभा में भी संगठन को सशक्त किया है।
धार्मिक रूप से मनेर संत मखदूम याह्या और मखदूम शाह दौलत की दरगाहों के लिए प्रसिद्ध है, जो इसे हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक बनाती हैं। शायद यही वजह है कि यहां की राजनीति चाहे जितनी कटु हो, सामाजिक सौहार्द कायम रहता है।
पटना जिले की इन चारों सीटों — फतुहा, मसौढ़ी, फुलवारी और मनेर — की एक समानता है: इनका राजनीतिक स्वरूप जातीय है, लेकिन इनका वोटबैंक अब “सिर्फ जात” पर नहीं, बल्कि “विकास और भरोसे” पर भी केंद्रित होने लगा है।
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विकास के मुद्दों के साथ-साथ नेतृत्व का चेहरा यहां निर्णायक भूमिका निभाएगा। राजद जहां अपने सामाजिक आधार पर भरोसा कर रहा है, वहीं एनडीए विकास और सुशासन के मॉडल के साथ लोगों को आकर्षित करने की कोशिश में है।








